मंगलवार, 2 मार्च 2010

हाँ तबीअत आजकल मेरी परीशाँ है बहोत्

हाँ तबीअत आजकल मेरी परीशाँ है बहोत्।
ठहरी-ठहरी ज़िन्दगी लगती परीशाँ है बहोत्॥

आसमानोँ पर कहीं सुनता हूं अनजाना सा शोर,
चाँद तारों की कोई बेटी परीशाँ है बहोत्॥

ख़फ़गियाँ आपस की ग़ैरों पर न खुल जायें कहीं,
दिल को है अन्देशए-सुबकी परीशाँ है बहोत्॥

मेरी तनहाई लिपटकर मुझसे रोई बार-बार,
देखकर मेरी बलानोशी परीशाँ है बहोत्॥

नफ़्स से कुछ कट गया है इसका रिश्ता इन दिनों,
जिसके बाइस पैकरे-ख़ाकी परीशाँ है बहोत्॥

मेरी उल्झन देखकर हैरत में हैं अहले-नज़र,
ज़िक्र है अहबाब में, तू भी परीशाँ है बहोत्॥

ख़ुम, सुराही, जाम, सब पाये गये ख़ामोश लब,
रिन्द रंज आलूद हैं साक़ी परीशाँ है बहोत्॥
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3 टिप्‍पणियां:

dipayan ने कहा…

"मेरी तनहाई लिपटकर मुझसे रोई बार-बार,देखकर मेरी बलानोशी परीशाँ है बहोत्॥"

बहुत सुन्दर और भावुक रचना ।

Randhir Singh Suman ने कहा…

मेरी उल्झन देखकर हैरत में हैं अहले-नज़र,
ज़िक्र है अहबाब में, तू भी परीशाँ है बहोत्.nice

रानीविशाल ने कहा…

Behad khubsurati se zindgi ki jaddodahad ka manzar bataya hai aapane...Aabhar!