होते ही सुब्ह खो गई, शबनम की एक बूँद.
होकर फ़िदा गुलों के जवाँ-साल जिस्म पर,
मोती सा कुछ पिरो गई, शबनम की एक बूँद.
क्या जानिए शुआओं ने क्या इस से कह दिया
जाकर कहीं पे सो गई, शबनम की एक बूँद.
देखा, तो नम से हो गए मेरे तअस्सुरात,
मुझमें ये क्या समो गई, शबनम की एक बूँद.
आंसू छलक के उसके जो आरिज़ पे आ गए,
इस शहर को डुबो गई, शबनम की एक बूँद।
******************
[फ़ोटो चित्र : ईलिया]
1 टिप्पणी:
बहुत उम्दा!!!
------------------
निवेदन
आप
लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या
दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी
चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
-
समीर लाल
-
उड़न तश्तरी
एक टिप्पणी भेजें