मंगलवार, 30 सितंबर 2008

दिल के सहरा में / नूर बिजनौरी

दिल के सहरा में कोई आस का जुगनू भी नहीं।
इतना रोया हूँ कि अब आँख में आंसू भी नहीं।
इतनी बेरहम न थी ज़ीस्त की दोपह्र कभी,
इन खराबों में कोई सायए-गेसू भी नहीं।
कासए-दर्द लिए फिरती है गुलशन की हवा,
मेरे दामन में तेरे प्यार की खुशबू भी नहीं।
छिन गया मेरी निगाहों से भी एहसासे-जमाल,
तेरी तस्वीर में पहला सा वो जादू भी नहीं।
मौज-दर-मौज तेरे गम की शफ़क़ खिलती है,
मुझको इस सिलसिलाए-रंग पे काबू भी नहीं।
दिल वो कम्बख्त कि धड़के ही चला जाता है,
ये अलग बात कि तू ज़ीनते-पहलू भी नहीं।
हादसा ये भी गुज़रता है मेर जाँ हम पर,
पैकरे-संग हैं दो, मैं भी नहीं, तू भी नहीं।
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