शनिवार, 20 सितंबर 2008

गुबार दिल पे बहोत आ गया है / फ़रीद जावेद

गुबार दिल पे बहोत आ गया है, धो लें आज।
खुली फिजा में कहीं दूर जाके रो लें आज।
दयारे-गैर में अब दूर तक है तनहाई,
ये अजनबी दरो-दीवार कुछ तो बोलें आज।
तमाम उम्र की बेदारियां भी सह लेंगे,
मिली है छाँव तो बस एक नींद सो लें आज।
तरब का रंग मुहब्बत की लौ नहीं देता,
तरब के रंग में कुछ दर्द भी समो लें आज।
किसे ख़बर है की कल ज़िन्दगी कहाँ ले जाय,
निगाहें-यार ! तेरे साथ ही न हो लें आज।
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