रात के ढलते-ढलते हम कुछ ऐसा टूट गये.
शीशा जैसे टूटे, रेज़ा-रेज़ा टूट गये.
हमसफ़रों ने साथ हमारा बीच में छोड़ दिया,
मंज़िल आते-आते होकर तनहा टूट गए.
तश्ना-लबी के बाइस जंगल-जंगल फिरे, मगर,
किस्मत देखिये, आकर कुरबे-दरिया टूट गये.
बिखर गए तखईल के सारे मोती चुने हुए,
कासे सब अफ़कार के लमहा-लमहा टूट गये.
जिनके पास हुआ करता था कुह्सरों का अज़्म
ऐसे लोगों को भी हमने देखा टूट गये.
खुम टूटा, पैमाने टूटे, ये सबने देखा,
मयखाने में और भी जाने क्या-क्या टूट गये.
जानते हैं सब दुश्मने-क़ल्बो-जाँ होता है इश्क़,
जिन लोगों ने उसको बेहद चाहा टूट गये.
तेरा करम बहोत है मुझपर, मिल गई मुझको राह,
तुझसे मेरे सारे रिश्ते दुनिया ! टूट गये.
दिल मज़बूत बहोत है आपका सुनता आया था,
आप भी जाफ़र साहब रफ्ता-रफ्ता टूट गये.
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गुरुवार, 25 सितंबर 2008
रात के ढलते-ढलते हम
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6 टिप्पणियां:
जानते हैं सब दुश्मने-क़ल्बो-जाँ होता है इश्क़,
जिन लोगों ने उसको बेहद चाहा टूट गये.
"beautiful composition"
Regards
Bahut khhoob sir jeee
रात के ढलते-ढलते हम कुछ ऐसा टूट गये.
शीशा जैसे टूटे, रेज़ा-रेज़ा टूट गये.
हमसफ़रों ने साथ हमारा बीच में छोड़ दिया,
मंज़िल आते-आते होकर तनहा टूट गए.
bahut khoobsurat
बहुत खूब लिखा है ...
Khub. Umda blog hai. Khaas taur par devanagari ke saath Urdu rasmulkhat dekh kar masarrat hui
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