अमृत पीकर क्या पाओगे।
विष पी लो शिव बन जाओगे॥
पीड़ा अपनी व्यक्त न करना,
लोग हँसेंगे, पछताओगे॥
चाँद बनो नीरव निशीथ में,
शीतल होकर मुस्काओगे॥
मन सशक्त रखना ही होगा,
पर्वत से जब टकराओगे॥
दो पल मन के भीतर झाँको.
दर्पन देख के घबराओगे॥
अलग-थलग रहकर जीवन में,
तड़पोगे या तड़पाओगे॥
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5 टिप्पणियां:
अमृत पीकर क्या पाओगे।
विष पी लो शिव बन जाओगे॥
पीड़ा अपनी व्यक्त न करना,
लोग हँसेंगे, पछताओगे॥
आप के ब्लॉग पर आना हमेशा सार्थक होता है शैलेश जी,
हर शेर अपनी छाप छोड़ता है ,
वाह !सुबहान अल्लाह !
आज का दिन तो बहुत अच्छा रहा सुबह जाफ़र साहब के कलाम से लुत्फ़ अंदोज़ हुए इस वक़्त इस रचना से .
बहुत बहुत शुक्रिया ऐसा साहित्य उपलब्ध कराने के लिए
अमृत पीकर क्या पाओगे।
विष पी लो शिव बन जाओगे॥
पीड़ा अपनी व्यक्त न करना,
लोग हँसेंगे, पछताओगे॥
क्या बात है!!! पहली बार आई, लगा, पहले क्यों नहीं आई?
एक अच्छी गजल पढ़कर वाह ! लिखने के लिए माउस पकड़ा ही था कि टिप्पणीकारों से निवेदन पढ़ लिया. अब इतनी सीधी,सरल, छोटे बहर की हिंदी गज़ल जिसका हर शेर आसानी से समझ में आ जाता है मगर लिखे विचारों को जीवन में ढालना उतना ही मुश्किल है..पढ़कर कोई वाह कहना चाहे तो उसे आप क्यों रोक रहे हैं..?
जिसने इतनी अच्छी गज़ल लिखी वह निश्चित रूप से विद्वान है ..अब कोई किसी विद्वान की बात सर झुका कर सुनना और वाह-वाह करना चाहता है तो क्या बुरा है..?
...मैं तो आदर से सिर्फ वाह ही कहना चाहता हूँ...वाह! क्या गज़ल पढ़ी आज.
चाँद बनो नीरव निशीथ में,
शीतल होकर मुस्काओगे॥
मन सशक्त रखना ही होगा,
पर्वत से जब टकराओगे॥ प्रेरक भाव सुन्दर गज़ल बधाई
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