बुधवार, 23 जून 2010

ख़्वाहिशें और तमन्नाएं सभी रखते हैं

ख़्वाहिशें और तमन्नाएं सभी रखते हैं।
हम तो हर हाल में जीने की ख़ुशी रखते हैं॥

नुक्ताचीनी की बहरहाल सज़ा मिलती है,
वो सम्झदार हैं जो होँटोँ को सी रखते हैं॥

आस्तीनों में नहीं साँपों को पाला करते,
डसने की चाह ये मरदूद बनी रखते हैं॥

दुशमनी का उन्हें अहबाब की होता है पता,
जागते-सोते भी जो आँख खुली रखते हैं॥

ज़िन्दगी के हैं दरो-बाम नुमायाँ जिनमेँ,
ऐसे अश'आर हयाते अबदी रखते हैं॥

आज लाज़िम है के मिलते हुए मुहतात रहें,
आज के दौर में सब चेहरे कई रखते हैं॥
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2 टिप्‍पणियां:

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

ज़िन्दगी के हैं दरो-बाम नुमायाँ जिनमेँ,
ऐसे अश'आर हयाते अबदी रखते हैं॥

आज लाज़िम है के मिलते हुए मुहतात रहें,
लोग इस दौर के चेहरे भी कई रखते हैं॥

वाह!
बहुत ख़ूब!
ज़माने के हालात की ख़ूबसूरत अक्कासी!

प्लीज़ आप टिप्पणीकारों से निवेदन हटा लें क्योंकि कभी कभी ग़ज़ल के मे’यार के अल्फ़ाज़ नहीं होते हमारे पास
शुक्रिया

निर्मला कपिला ने कहा…

बेशक आपके लिये वाह वाही की टिप्पणियाँ अर्थहीन हैं मगर हम जैसे नौसिखिये इन गज़लों से बहुत कुछ सीखते हैं। जब पढा है सीखा है तो धन्यवाद कर के जाना तो हमारा फर्ज़ है आप पर कोई एहसान नही कर रहे। लाजवाब गज़ल धन्यवाद्