अमृत पीकर क्या पाओगे।
विष पी लो शिव बन जाओगे॥
पीड़ा अपनी व्यक्त न करना,
लोग हँसेंगे, पछताओगे॥
चाँद बनो नीरव निशीथ में,
शीतल होकर मुस्काओगे॥
मन सशक्त रखना ही होगा,
पर्वत से जब टकराओगे॥
दो पल मन के भीतर झाँको.
दर्पन देख के घबराओगे॥
अलग-थलग रहकर जीवन में,
तड़पोगे या तड़पाओगे॥
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