गुरुवार, 26 मार्च 2009

रिक्त हैं आँखों से सपने, नींद भी है लापता.

रिक्त हैं आँखों से सपने, नींद भी है लापता.
शून्य में साँसें टंगी हैं, ज़िन्दगी है लापता.
कैसी नीरवता है, ध्वनियाँ तक नहीं होतीं कहीं,
पाश में हैं सब तिमिर के, रोशनी है लापता.
गाँव के सन्नाटे पथ में रात बस भीगी ही थी,
सब ठगे से हैं, वधू की पालकी है लापता.
जी चुके जितना था जीना,लक्ष्य अब कोई नहीं,
किस दिशा में जाएँ, क्या सोचें, ख़ुशी है लापता.
हम न सुन पाए उजालों की कभी शहनाईयां,
राग जिसमें थे हजारों, वो नदी है लापता.
हम पुराने लोग सीखें कैसे ये जीने के ढब,
टीम-टाम इतने बहोत हैं, सादगी है लापता।
*

2 टिप्‍पणियां:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

रिक्त हैं आँखों से सपने, नींद भी है लापता.
शून्य में साँसें टंगी हैं, ज़िन्दगी है लापता.
कैसी नीरवता है, ध्वनियाँ तक नहीं होतीं कहीं,
पाश में हैं सब तिमिर के, रोशनी है लापता.....
suder shabdon ka chayan kiya hai

"अर्श" ने कहा…

KMAAL KE MATALE KE SAATH KAMAAL KI GAZAL KAHI AAPNE BAHOT PASAND AAEE.. ZINDAGI KE HAR PAHALU SE PARICHAYA KARAYA AAPNE...


ARSH