मंगलवार, 17 मार्च 2009

सड़कों के नल से आता है तश्ना-लबों का शोर.

सड़कों के नल से आता है तश्ना-लबों का शोर.
पानी के बर्तनों में है प्यासे घरों का शोर.
बारिश की एक बूँद भी जिनमें न थी कहीं,
कल आसमान पर था उन्हीं बादलों का शोर.
कोई तो है जो बैठा है सैयाद की तरह,
ख़्वाबों के हर दरख्त पे है तायरों का शोर.
मंजिल-शनास होते नहीं जो भी रास्ते,
जाँ-सोज़ो-दिल-शिकस्ता है उन रास्तों का शोर.
सन्नाटा बस्तियों में है, खाली हैं सब मकाँ,
छाया हुआ फ़िज़ाओं में है मरघटों का शोर.
दरिया को अपनी राह पे चलना पसंद है,
साहिल मचाते रहते हैं पाबंदियों का शोर.
फूलों का एहतेजाज चमन में सुनेगा कौन,
महसूस बागबाँ ने किया कब गुलों का शोर.
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2 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

bahut umdaa ghazal pesh kee hai aap ne!

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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

गौतम राजऋषि ने कहा…

"पानी के बर्तनों में है प्यासे घरों का शोर" क्या बात है सर...क्या बात है
और इस शेर पर हम सिज्दे में हैं आपके "दरिया को अपनी राह पे चलना पसंद है/साहिल मचाते रहते हैं पाबंदियों का शोर"