गुरुवार, 20 मई 2010

लोग झुक जाते हैं वैसे तो सभी के आगे


लोग झुक जाते हैं वैसे तो सभी के आगे।
सर झुकाते नहीं ख़ुददार किसी के आगे॥

देख कर आंखों से भी कुछ नहीं कहता कोई,
लब सिले रहते हैं क्यों आज बदी के आगे॥

ग़म ज़माने का है जैसा भी हमें है मंज़ूर,
हाथ फैलाएंगे हरगिज़ न ख़ुशी के आगे॥

माँगने वाले हुआ करते हैं बेहद छोटे,
बावन अँगुल के हुए विश्नु बली के आगे॥

किस तरह करता मैं कैफ़ीयते-दिल का इज़हार,
लफ़्ज़ ख़ामोश थे आँखों की नमी के आगे।

जब भी मैं घर से निकलता हूं तो लगता है मुझे,
रास्ते बन्द हैं सब उसकी गली के आगे।

दिल भी एक शीशा है जिसको है तराशा उसने,
सब हुनर हेच हैं इस शीशागरी के आगे॥

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3 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

waah bahut khoob...

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

लोग झुक जाते हैं वैसे तो सभी के आगे
।सर झुकाते नहीं ख़ुददार किसी के आगे॥

बहुत ख़ूब!

देख कर आंखों से भी कुछ नहीं कहता कोई,
लब सिले रहते हैं क्यों आज बदी के आगे॥

वाह!

ग़म ज़माने का है जैसा भी हमें है मंज़ूर,
हाथ फैलाएंगे हरगिज़ न ख़ुशी के आगे॥

सुबहान अल्लाह !क्या ख़ुद्दारी और अज़्म है

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

लोग झुक जाते हैं वैसे तो सभी के आगे।
सर झुकाते नहीं ख़ुददार किसी के आगे॥

वाह! बहुत ख़ूब!

ग़म ज़माने का है जैसा भी हमें है मंज़ूर,
हाथ फैलाएंगे हरगिज़ न ख़ुशी के आगे॥

क्या बात है !सलाम है इस जज़्ब ए ख़ुद्दारी को