शनिवार, 1 मई 2010

ठेस लगे तो रोते कब हैं

ठेस लगे तो रोते कब हैं।
शब्द किसी के होते कब हैं॥

हम अपना ही हाल न जानें,
जागते कब हैं सोते कब हैं॥

आँसू मेरी आँखों में हैं,
उसकी आँख भिगोते कब हैं॥

हमको फ़स्लों से मतलब है,
खेत ये हम ने जोते कब हैं॥

आंखों वाले ही अन्धे हैं,
अन्धे अन्धे होते कब हैं॥
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9 टिप्‍पणियां:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

आंखों वाले ही अन्धे हैं,
अन्धे अन्धे होते कब हैं

एकदम सत्य वचन है ...
ग़ज़ल बहुत ही बढ़िया है ... इतने अच्छे शेर हैं कि मेरे पास तारीफ़ के लिए शब्द नहीं है ..

दिलीप ने कहा…

bahut khoob sahab kya sher likhe hain..

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

सच में शब्द किसी के नहीं होते

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

आपकी ग़ज़ल में भाव और कलापक्ष
दोनों बहुत संतुलित है। हर शेर में निहित
संदेश पूरे सामर्थ्य के साथ उद्घाटित हो रहा
है। ग़ज़ल के मतले में आपने ‘कहा है-
"शब्द किसी के होते कब है"।
किसी शब्दशिल्पी को शब्दों पर ऐसा आरोप लगाना उचित नहीं लगता है।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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शब्द सत्ता भी होनी चाहिए।
अर्थवत्ता भी होनी चाहिए।।
काव्य है मात्र नहीं तुकबंदी-
बुद्धिमत्ता भी होनी चाहिए॥
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स्वप्निल तिवारी ने कहा…

is ghazal ke sabhi ashaar prasangik hain .. khet waa sher khas taur se pasand aaya..shubhkamnayen ..

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Shekhar Kumawat ने कहा…

bahut khub


badhai is ke liye aap ko

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 ने कहा…

हमको फ़स्लों से मतलब है, खेत ये हम ने जोते कब हैं॥


वाह..क्या बात है..

K.P.Chauhan ने कहा…

ham apna hi hal naa jaane "
sote kab hain jagte kabhain "

aankhon waale hi andhe hain "
andhe ,andhe hote kab hain "

aapne itnaa saty or shuddh likhaa hai ki main to aapkaa murid ho gyaa