ठेस लगे तो रोते कब हैं।
शब्द किसी के होते कब हैं॥
हम अपना ही हाल न जानें,
जागते कब हैं सोते कब हैं॥
आँसू मेरी आँखों में हैं,
उसकी आँख भिगोते कब हैं॥
हमको फ़स्लों से मतलब है,
खेत ये हम ने जोते कब हैं॥
आंखों वाले ही अन्धे हैं,
अन्धे अन्धे होते कब हैं॥
*******
9 टिप्पणियां:
आंखों वाले ही अन्धे हैं,
अन्धे अन्धे होते कब हैं
एकदम सत्य वचन है ...
ग़ज़ल बहुत ही बढ़िया है ... इतने अच्छे शेर हैं कि मेरे पास तारीफ़ के लिए शब्द नहीं है ..
bahut khoob sahab kya sher likhe hain..
सच में शब्द किसी के नहीं होते
आपकी ग़ज़ल में भाव और कलापक्ष
दोनों बहुत संतुलित है। हर शेर में निहित
संदेश पूरे सामर्थ्य के साथ उद्घाटित हो रहा
है। ग़ज़ल के मतले में आपने ‘कहा है-
"शब्द किसी के होते कब है"।
किसी शब्दशिल्पी को शब्दों पर ऐसा आरोप लगाना उचित नहीं लगता है।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
/////////////////////////////////
शब्द सत्ता भी होनी चाहिए।
अर्थवत्ता भी होनी चाहिए।।
काव्य है मात्र नहीं तुकबंदी-
बुद्धिमत्ता भी होनी चाहिए॥
//////////////////////////////////
is ghazal ke sabhi ashaar prasangik hain .. khet waa sher khas taur se pasand aaya..shubhkamnayen ..
nice
bahut khub
badhai is ke liye aap ko
हमको फ़स्लों से मतलब है, खेत ये हम ने जोते कब हैं॥
वाह..क्या बात है..
ham apna hi hal naa jaane "
sote kab hain jagte kabhain "
aankhon waale hi andhe hain "
andhe ,andhe hote kab hain "
aapne itnaa saty or shuddh likhaa hai ki main to aapkaa murid ho gyaa
एक टिप्पणी भेजें