मेरे मकान में थोडी सी रौशनी कम है ।
के आफताब की आमद यहाँ हुयी कम है ॥
मैं उसको चाहता हूँ और उससे दूर भी हूँ।
कभी भरोसा है उसपर बहोत , कभी कम है ॥
लबों पे उसके शहद की मिठास है अब भी,
मगर ज़बान में हलकी सी चाशनी कम है ॥
सवाल मैं ने किया, चेहरा मुज्महिल क्यों है ?
जवाब उसने दिया, आज ताजगी कम है ॥
पिला रहा है वो भर-भर के जाम क्यों सब को,
उसे ख़बर है कि रिन्दों में तशनगी कम है।
उसे बताओ वो महफ़िल में सबसे अच्छा है,
मगर मिजाज में उसके शगुफ्तगी कम है ॥
जदीदियत ने हमारे दमाग बदले हैं ,
जभी तो आज बुजुर्गों की पैरवी कम है।।
चलो यहाँ से, के घुटता है दम यहाँ मेरा,
यहाँ पे शोर बहोत, कारकर्दगी कम है॥
कहाँ मैं आ गया , ये बस्तियां अजीब सी हैं,
यहाँ हयात की चादर अभी खुली कम है॥
तुम्हारी बातों से मायूसियां झलकती हैं,
तुम्हारे जुम्लों में तासीरे-ज़िंदगी कम है ॥
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