प्रोफेसर हरि शंकर आदेश एक सुविख्यात कवि, लेखक और संगीतकार हैं. कैनडा, अमेरिका और ट्रीनिडाड से हिन्दी की जीवन-ज्योति नामक पत्रिका का सफल संपादन कर रहे हैं और हिन्दी भाषा तथा साहित्य के प्रचार-प्रसार एवं हिंदू धर्म और संस्कृति की सुरक्षा तथा भारत के गौरव को समुज्ज्वल देखने के लिए प्रतिबद्ध और समर्पित हैं. सुदूर देश में रहकर भी हिन्दी में लगभग एक सौ साठ पुस्तकें लिखने का उन्हें श्रेय प्राप्त है. विचारों में खुलापन, संकल्प की दृढ़ता, विवेक-युक्त चिंतन और साम्प्रदायिक सौहार्द की चिंता उनके चरित्र की विशेषताएँ हैं. प्रस्तुत है यहाँ उनकी तीन कवितायें-
१.अश्रुपात क्यों ?
आज अचानक अश्रुपात क्यों ?
होता है अपराध-बोध सा ,
अंतरात्मा के विरोध सा,
प्रबल प्रभंजन भर प्राणों में,
झरता है युग-युग प्रपात क्यों ?
आती है ध्वनि अंतराल से ,
असावधान मत रहो काल से,
अविदित, अ-प्रत्याशित क्षण में,
होता यम् का वज्रपात क्यों ?
यह सच है दम्भी न रहा मैं,
किंतु स्वावलम्बी न रहा मैं,
अन्धकार का भी आश्रय ले ,
प्रफुल्लेच्छु उर-वारिजत क्यों ?
प्रिय ! न कहीं पथ-च्युत हो जाऊं,
संबल दो, अस्मिता बचाऊं,
विषम परिस्थितियों के तम में,
हुआ तिरोहित नव-प्रभात क्यों ?
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२. सम्पूर्ण
मैं जनता हूँ कि तुम
मुझे प्यार नहीं दे सकोगे,
तो घृणा ही दे दो।
मैं जनता हूँ कि तुम
मुझे सुख नहीं दे सकोगे,
तो पीड़ा ही दे दो ।
किंतु जो कुछ भी दो,
दो सम्पूर्ण।
मैं नहीं चाहता कि तुम उसका एक अंश भी,
अपने पास रखो ।
सारी घृणा,
सारी पीड़ा,
मुझे दे दो।
ताकि संसार के हर प्राणी को देने के लिए,
तुम्हारे पास,
प्यार के अतिरिक्त और कुछ न रहे।
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३। प्रश्न
जब कि पशु का शिशु,
सदा ही पशु कहाता,
और,
जब संतान मानव की कहाती है मनुज ही .
वनस्पतियों की उपज है,
वनस्पति ही तो कहातीइस जगत में ।
क्यों न फिर भगवन की संतान भी,
भगवन कहलाती भुवन में ?
और की जाती उपासित है सदाभगवन सी ही ?
जब कि हर प्राणी यहाँ भगवन की संतान,
फिर गुण क्यों नहीं उसमें पिता के ?
और यह शैतान है उपजा कहाँ से ?
पुत्र है शैतान यदि भगवन का ही,
अर्थ है इसका कि फिर भगवन तो,
शैतान का भी बाप है ।
शायद इसी से मिट नहीं पाया अभी तक विश्व
का संताप है ?
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