सोमवार, 16 नवंबर 2009

जब उस की जफ़ाओं में कुछ आ जाती है नर्मी

जब उस की जफ़ाओं में कुछ आ जाती है नर्मी ।
दरिया की हवाओं में कुछ आ जाती है नर्मी ॥

हरियाली कहीं भी हो महज़ उस के असर से ,
सूरज की शुआओं में कुछ आ जाती है नर्मी ॥

साहिल पे अगर साथ हो तस्वीर भी उसकी ,
मौजों की अदाओं में कुछ आ जाती है नर्मी ॥

गहराइयों से दिल के निकलती हैं कभी जब,
इन्साँ की दुआओं में कुछ आ जाती है नर्मी ॥

ईमान हो पुख़्ता तो अक़ीदा है ये मेरा,
पत्थर के ख़ुदाओं में कुछ आ जाती है नर्मी॥
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1 टिप्पणी:

समयचक्र ने कहा…

जब उस की जफ़ाओं में कुछ आ जाती है नर्मी ।
दरिया की हवाओं में कुछ आ जाती है नर्मी ॥

बहुत बढ़िया रचना ..बधाई