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बुधवार, 12 नवंबर 2008

यहाँ आती है अंगनाई से कच्चे आम की खुशबू.

यहाँ आती है अंगनाई से कच्चे आम की खुशबू.
सुबह की तर्ह मोहक हो गई है शाम की खुशबू.
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दुपहरी सर पे है सूरज भी है आवेश में शायद,
नहीं पगडंडियों में अब सुखद आयाम की खुशबू.
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मुझे लगता है कुछ दिन में ये पोखर सूख जायेगा,
कहीं यादों में रह जायेगी इसके नाम की खुशबू.
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रोपाई कर रही है धान के खेतों में वो लड़की,
छलक जाती है अल्ल्हड़पन से मय के जाम की खुशबू.
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ये स्मारक जो मेरे गाँव में है, ध्यान से देखो,
मिलेगी देश के स्वाधीनता संग्राम की खुशबू.
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यहीं सब तीर्थ स्थल हैं वो है इस तथ्य से परिचित,
कि उसके चित्त से आती है चारो धाम की खुशबू.
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