क्यों इस देश की मिटटी को चंदन का नाम न दें.
अमर शहीदों के सपनों को क्या अंजाम न दें ?
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सम्भव हो तो बाँट दें सबमें स्वर्णिम नवल प्रभात,
और किसी को ढलता दिन, कजलाई शाम न दें.
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हम वह नेता नहीं जो अपने सुख में जीते हैं,
चने बांटते फिरें, किसी को भी बादाम न दें.
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बंधुआ मजदूरों सा बरतें इस सरकार के लोग,
काम तो दुनिया भर का लें कोई इनआम न दें.
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होरी, धनियाँ, घीसू, माधव, हल्कू जैसे लोग,
लू, ठिठुरन, बदहाली झेलें, कुछ इल्ज़ाम न दें.
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यह कैसी मधुशाला जिसमें हर कोई प्यासा,
लुढ़काई जाये मदिरा पीने को जाम न दें.
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शुक्रवार, 21 नवंबर 2008
क्यों इस देश की मिटटी को चंदन का नाम न दें.
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