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शनिवार, 23 अगस्त 2008

बच्चा / नरेंद्र मोहन

कई बार उसे आग में जलाया गया
दीवार में चिनाया गया
पर हर बार वह लौट आया
हँसता, दमकता हुआ.

कई बार उसपर गोलियाँ दागी गयीं
वह नहीं मरा
कई बार उसे तलवार से काटने के लिए
हाथ आगे बढे
और बीच में ही झूलते रह गए

आग ने उसे तेजोदीप्त किया
दीवार ने पुख्ता बनाया
गोली ने तेज़ी दी
और तलवार ने धार.

सबसे ऊपर रहा
उसकी किलकारियों का आकाश
धूमकेतु उसका कुछ न बिगाड़ सका
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[दिल्ली, 1979]

अँधेरी परत / नरेंद्र मोहन

अंधेरे की परत-दर-परत से
लिपटता चला गया
एक अंतहीन खोह के अंधे विस्तार में
आँखें फाड़े देखता रहा.

लिपटते-चिपकते-भिनभिनाते
आगे बढ़ते, आवाज़ बुलंद करते
सहमे हुए लोगों का हुजूम और दलदल
और अँधेरा और शोर-गुल !

लिपटने बंद होने के बीच की
अँधेरी परत में धसका देश
मैं ने नुमायाँ करना चाहा एक बड़े शीशे में

देखा (जितना दिख सकता था)
एक काली तिड़की हुई वृहदाकार स्लेट
और भौंकते, लार टपकाते कुत्तों के सिवा
वहाँ कुछ नहीं था.
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[दिल्ली, 1979]