लाख हों आंखों में आंसू, मुस्कुराते हैं वो लोग.
दूसरों के सामने यूँ गम छुपाते हैं वो लोग.
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जान देकर जो बचाते थे वतन की आबरू,
आपको, हमको, सभी को याद आते हैं वो लोग.
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अपनी ज़ाती सोच से बाहर निकल कर देखिये,
आप ही की तर्ह कुछ सपने सजाते हैं वो लोग.
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आसमानों की छतों के साये में रहते हुए,
ज़िन्दगी की धूप में ख़ुद को सुखाते हैं वो लोग.
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जिनकी ज़हरीली ज़बानों पर नहीं कोई लगाम,
वक़्त आने पर हमेशा मुंह छुपाते हैं वो लोग.
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कितने बुज़दिल हैं हमारे दौर के दहशत-फ़रोश,
हक़ पे हैं तो क्यों नहीं आँखें मिलाते हैं वो लोग.
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शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008
लाख हों आंखों में आंसू, मुस्कुराते हैं वो लोग
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