गिरफ़्तारी पे उसकी इस क़दर बेचैनियाँ क्यों हैं.
अभी मुजरिम वो साबित कब हुआ, नौहा-कुनाँ क्यों हैं.
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न लेगा आपसे जब मशविरा तफ़तीश में कोई,
तो फिर तफ़तीश को लेकर सभी से सर-गरां क्यों हैं.
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वतन पर जान देना आपका पैदाइशी हक़ है,
अगर सच है, वतन-दुश्मन पे इतने मेहरबाँ क्यों हैं.
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ज़ईफी आ गई वेदों की शक्लें तक नहीं देखीं,
तअल्लुक़ जब नहीं वेदों से, उन पर शादमाँ क्यों हैं.
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कलीसाओं पे हमले करना क्या मज़हब सिखाता है,
अगर ऐसा नहीं है, उनसे इतने बदगुमाँ क्यों हैं.
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दलित हों या मुसलमाँ या वो सिख हों या हों ईसाई,
सभी के साथ तनहा आप ही ईज़ा-रसां क्यों हैं.
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सोमवार, 17 नवंबर 2008
गिरफ़्तारी पे उसकी इस क़दर बेचैनियाँ क्यों हैं.
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