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बुधवार, 17 दिसंबर 2008

आप कितनी भी प्रतीक्षा कीजिये होगा वही.

आप कितनी भी प्रतीक्षा कीजिये होगा वही.
जिनसे आशाएं हैं, देंगे फिर हमें धोखा वही.
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जैसी घटनाओं की आशंका थी पहले से हमें,
मूक दर्शक बनके हमने दृश्य सब झेला वही.
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आदमी की जान का अब मूल्य ही क्या रह गया,
आज की दुनिया में शायद सबसे है सस्ता वही.
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अपने षड्यंत्रों से जिसने हमको आतंकित किया,
भेद खुलने पर हुआ संसार में रुसवा वही.
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सबके मन-मस्तिष्क में घर कर गया वो हादसा,
रात-दिन रहती है घर बाहर महज़ चर्चा वही.
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कम न था आतंक रावण का, हुआ उसका विनाश,
आज़मा कर देखिये ब्रह्मास्त्र का नुस्खा वही.
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आज भी गाँवों में है गोदान प्रासंगिक बहुत,
खेत-खलिहानों में हैं, होरी वही, धनिया वही.
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छप्परों में साँस गिनते-गिनते मर जायेंगे वो,
उनका दुख वो जानते हैं जिनपे है बीता वही.
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हर क़दम पर जिसने हमको आपको धोखा दिया,
उस पुरस्कृत पंक्ति में आगे मिला बैठा वही,
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