वो कभी इतिहास को पढ़ता नहीं.
इसलिए कुछ झूठ-सच गढ़ता नहीं।
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इस सदी में भी वो कितना मूर्ख है,
दोष औरों पर कभी मढ़ता नहीं।
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झूठ को दुहराते रहिये बार-बार,
सच भी उसकी तर्ह सिर चढ़ता नहीं।
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हौसले हो जाते हैं जिसके शिथिल,
थक के फिर आगे कभी बढ़ता नहीं।
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बेल-बूटे काढते थे जो कभी,
आज उन हाथों से कुछ कढता नहीं।
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