ग़ज़ल / शैलेश ज़ैदी / हिन्दी में ग़ज़ल कहने का लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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गुरुवार, 3 जून 2010

हिन्दी में ग़ज़ल कहने का है स्वाद ही कुछ और्

हिन्दी में ग़ज़ल कहने का है स्वाद ही कुछ और्।
रचनाओं में होता है यहाँ नाद ही कुछ और्॥
आशीष दिया करती है माँ सुख से रहूँ मैं,
पर मुझसे समय करता है संवाद ही कुछ और्।
सीताओं की होती है यहाँ अग्नि परीक्षा,
राधाओं के है प्यार की मर्याद ही कुछ और्।
वह आँखें हैं कजरारी,चमकदार, नुकीली,
उन आँखों में चाहत का है उन्माद ही कुछ और्॥
ये फूल तो पतझड़ में भी मुरझाते नहीं हैं,
इन फूलों की जड़ में है पड़ी खाद ही कुछ और॥
काया में बजा करते हैं मीराओं के नूपुर,
अन्तस में हैं उस श्याम के प्रासाद ही कुछ और्॥
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