फ़िज़ा शिकन-ब-जबीं है वहाँ न जाइयेगा।
वहाँ ख़ुलूस नहीं है वहाँ न जाइयेगा ॥
बिछाए बैठे हैं बारूद लोग राहों में,
फ़साद ज़ेरे-ज़मीं है वहाँ न जाइयेगा॥
फ़सुर्दगी के बदन पर है बूए-गुल की नक़ाब,
फ़रेब तख़्त-नशीं है वहाँ न जाइयेगा॥
हरेक सम्त मिलेगा सुलगती राख का ढेर,
न अब मकाँ न मकीं है वहाँ न जाइयेगा॥
वो मैकदा है वहाँ रस्मे-इश्क़ का है चलन,
वहाँ न धर्म न दीं है वहाँ न जाइयेगा॥
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फ़िज़ा=वतावरण, शिकन-ब-जबीं=माथे पर सिल्वटें पड़ना, ख़ुलूस=आत्मीयता, फ़साद=उपद्रव, ज़ेरे-ज़मीं=ज़मीन के नीचे, फ़सुर्दगी=मलिनता, बूए-गुल=फूल की सुगंध, नक़ाब=आवरण, फ़रेब=धोका, तख़्त-नशीं=सिंहासन पर बैठा हुआ, मकीं=मकान में रहने वाला,मैकदा=मदिरालय, रस्मे-इश्क़=प्रेम-सहिता,दीं=एकेश्वरवाद में आस्था।