ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / मिली है जो भी हमें लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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मंगलवार, 9 मार्च 2010

मिली है जो भी हमें ज़िन्दगी ग़नीमत है

मिली है जो भी हमें ज़िन्दगी ग़नीमत है।
ये साँस चल तो रही है, यही ग़नीमत है॥

कभी दिखाए किसी को न आबले दिल के,
कभी न सोचा करें ख़ुदकुशी, ग़नीमत है॥

सफ़र से थक के यक़ीनन कहीं भी रुक जाते,
शजर न राह में था एक भी ग़नीमत है॥

किसी का क़र्ज़ नहीं है हमारी गरदन पर,
तबाह हाली में इतनी ख़ुशी ग़नीमत है॥

दिया था उसने बहोत कुछ नुमाइशों के लिए,
हमारे साथ रही सादगी ग़नीमत है॥

ये बात सच है के हम मुद्दतों से प्यासे हैं,
मगर ये प्यास है बस प्यार की ग़नीमत है॥

हज़ारों लोग हैं आते ज़रूरतों से मगर,
उदास होके न लौटा कोई ग़नीमत है॥

सुकून है के हमेशा मैं सर उठा के जिया,
हुई न रुस्वा मेरी ख़ुदसरी ग़नीमत है॥
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