बेचैन सी हैं पलकें शायद।
रोई हैं बहोत आंखें शायद।
कुछ देर तो बैठें साथ कभी,
कुछ प्यार की हों बातें शायद्॥
जो शीश'ए दिल कल टूट गया,
चुभती हैं वही किरचें शायद्॥
इस बार गुज़ारिश फिर से करूं,
मंज़ूर वो अब कर लें शायद॥
कैफ़ीयते-दिल पहचानती हैं,
सहमी-सहमी यादें शायद्॥
ठहरी थीं मेरे घर में भी कभी,
महताब की कुछ किरनें शायद्॥
हर एक के दिल की धड़कन में,
कल शेर मेरे गूंजें शायद्॥
***********