ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / टुकड़े-टुकड़े सुबह हुई लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / टुकड़े-टुकड़े सुबह हुई लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

टुकड़े-टुकड़े सुबह हुई था होश कहाँ

टुकड़े-टुकड़े सुबह हुई था होश कहाँ।
दामन में थी आग लगी था होश कहाँ॥

उसके दर पर सज्दा करने आया था,
पेशानी फिर उठ न सकी था होश कहाँ॥

वो आमाल तलब कर बैठा बेमौक़ा,
फ़र्द थी बिल्कुल ही सादी था होश कहाँ॥

दिल के दाग़ नुमायँ हो कर बोल उठे,
बरत न पाया ख़ामोशी था होश कहाँ॥

ज़ख़्मों की तेज़ाबीयत का था एहसास,
चोट थी हल्की या गहरी था होश कहाँ॥
********