लायी हयात आये, क़ज़ा ले चली, चले।
अपनी खुशी न आये, न अपनी खुशी चले।
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे,
पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले।
हो उमरे- खिज्र भी तो कहेंगे बवक़्ते-मर्ग,
हम क्या रहे यहाँ, अभी आये अभी चले।
दुनिया ने किसका राहे-फना में दिया है साथ,
तुम भी चले चलो युंही, जबतक चली चले।
कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बद-क़िमार,
जो चाल हम चले वो निहायत बुरी चले।
जाते हवाए-शौक़ में हैं इस चमन से 'जोक,'
अपनी बला से बादे-सबा जब कभी चले।
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