गुरुवार, 13 अगस्त 2009

जो अब्र बाइसे तस्कीने ख़ासो आम हुआ

जो अब्र बाइसे तस्कीने ख़ासो आम हुआ ।
बराहे रास्त समन्दर से हम कलाम हुआ ॥

हमारी शायरी जिस दौर में थी ज़ेरे बहस ,
हमारे साथ ही वो दौर भी तमाम हुआ ॥

हरेक ज़बान का किरदार है जुदागाना ,
न जिस में खोट हो कोई उसे दवाम हुआ ॥

वो ख़ुशअदा भी ख़ुशअन्दाज़ो ख़ुशजमाल भी है,
जभी तो वादिए दिल में वो ख़ुश्मुक़ाम हुआ ॥

किसान हो गये आमादा ख़ुद्कुशी के लिए,
वो ख़ुद्कफ़ील बनें कब ये इह्तमाम हुआ ॥

सियासतों ने शिकस्ता किया सफ़ीनए दिल,
मिज़ाज पानियों का बहरे इन्तेक़ाम हुआ ॥

हमारा मुल्क है आज़ाद सिर्फ़ काग़ज़ पर,
अमल में फिर से ये हालात का ग़ुलाम हुआ ॥
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1 टिप्पणी:

अमिताभ मीत ने कहा…

हरेक ज़बान का किरदार है जुदागाना ,
न जिस में खोट हो कोई उसे दवाम हुआ ॥

हमारा मुल्क है आज़ाद सिर्फ़ काग़ज़ पर,
अमल में फिर से ये हालात का ग़ुलाम हुआ ॥

बहुत खूब.