शनिवार, 3 अप्रैल 2010

कौन था उसके सिवा जिसकी सताइश करता।

कौन था उसके सिवा जिसकी सताइश करता।
बुत भी होता वो अगर, उसकी परस्तिश करता॥

लग़ज़िशे-आदमे-ख़ाकी का नतीजा है बशर,
कैसे इनसान न फिर बारहा लग़ज़िश करता॥

अब्दो-माबूद के रिश्ते हैं गुनाहों से बलन्द,
बख़्शता सारे गुनह वो जो मैं ख़्वाहिश करता॥

सामने देख के उसको मैं उसी में गुम था,
लब को था होश कब इतना के वो जुम्बिश करता॥

ग़ैर होता तो न दिलचस्पियाँ होतीं मुझ में,
दोस्त होता न अगर वो तो न साज़िश करता॥

काश बदले हुए हालात का होता एहसास,
कामियाबी के लिए कुछ तो मैं काविश करता।
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3 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

दोस्त होता न अगर वो तो न साज़िश करता.nice

Jandunia ने कहा…

बेहतर गजल

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।