मंगलवार, 21 जुलाई 2009
जिस्म के ज़िन्दाँ में उमरें क़ैद कर पाया है कौन ।
रविवार, 19 जुलाई 2009
दोस्तों से राब्ता रखना बहोत मुश्किल हुआ।
शनिवार, 18 जुलाई 2009
दिल खिंच रहा है फिर उसी तस्वीर की तरफ़ ।
शनिवार, 4 जुलाई 2009
जुनूँ-खेजी में दीवानों से कुछ ऐसा भी होता है.
जुनूँ-खेजी में दीवानों से कुछ ऐसा भी होता है.
के जिसके फैज़ से क़ौमों का सर ऊंचा भी होता है.
सफ़ीने की मदद को खुद हवाएं चल के आती हैं,
सहूलत के लिए ठहरा हुआ दरिया भी होता है.
मेरी राहों में लुत्फे - नकहते - बादे-बहारी है,
मेरे सर पर महो-खुर्शीद का साया भी होता है.
बजाहिर वो मेरी जानिब से बे-परवा सा लगता है,
मगर एहसास उसको मेरे ज़खमों का भी होता है.
ये मज़्लूमी की चादर मैं जतन से ओढे रहता हूँ,
के लग्जिश से मेरा महबूब कुछ रुसवा भी होता है.
उसी का है करम इस हाल में भी सुर्ख-रू हूँ मैं,
बरतने में वो अक्सर हौसला अफजा भी होता है.
नज़र के सामने रहता है वो कितने हिजाबों में,
मगर ख़्वाबों में जब आता है बे-पर्दा भी होता है.
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सोमवार, 29 जून 2009
ले जाता है ऐ दिल मुझे नाहक़ तू कहाँ और.
ले जाता है ऐ दिल मुझे नाहक़ तू कहाँ और.
गोकुल के सिवा कोई नहीं जाये-अमां और.
जमुना का ये तट और ये मुरली के तराने,
जी चाता है उम्र गुज़र जाये यहाँ और.
ये इश्क के इज़हार की आज़ादी कहाँ है
इस खित्ते को शायद हैं मिले अर्ज़ो-समाँ और.
हर सम्त कदम्बों के दरख्तों के हैं साये,
मुमकिन ही नहीं होती हो खुश्बूए-जिनाँ और.
सच्चाई के अल्फाज़ हैं दोनों के लबों पर
राधा का बयाँ और है कान्हा का बयाँ और.
इस दिल में अगर श्याम मकीं हो नहीं सकते,
हम फिर से बना लेंगे नया एक मकाँ और.
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रविवार, 28 जून 2009
आमिना के लाल का सौन्दर्य मन को भा गया.
आमिना के लाल का सौन्दर्य मन को भा गया.
रूप का लावन्य मानस के क्षितिज पर छा गया.
उसकी लीलाएं अनोखी थीं सभी को था पता,
उसकी छवियों पर निछावर सारा जग होता गया.
हम तिमिर में थे, उजालों में कुछ आकर्षण न था,
रोशनी का अर्थ आकर वो हमें समझा गया.
उसके आने की मिली जब सूचना कहते हैं लोग,
आग फ़ारस की बुझी सारा महल थर्रा गया.
शत्रुओं को उसने दो पल में चमत्कृत कर दिया,
चाँद के स्पष्ट दो टुकड़े हुए देखा गया.
गोरे काले सब बराबर हैं ये जब उसने कहा,
शोषकों के दंभ का प्रासाद ही भहरा गया.
उसकी वाणी से परिष्कृत हो गए मन के कलश,
उसकी शिक्षा का हरित-सागर हमें नहला गया.
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श्याम से गर जुड़ा नहीं होता.
श्याम से गर जुड़ा नहीं होता.
दिल किसी काम का नहीं होता.
तुमको ऊधव किसी से प्रेम नहीं,
वर्ना ये सिलसिला नहीं होता.
उस से आँखें अगर नहीं मिलतीं,
रात दिन जागना नहीं होता.
कैसे माखन चुरा लिया उसने,
ग्वालनों को पता नहीं होता.
वो नहीं तोड़ता कभी गागर,
जब भी पानी भरा नहीं होता.
छोड़कर वो अगर नहीं जाता,
जीना यूँ बे-मज़ा नहीं होता.
पैदा गोकुल में जब न होना था,
जन्म हम ने लिया नहीं होता.
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बांसुरी की तान में जीवन की व्याख्याएँ मिलीं.
बांसुरी की तान में जीवन की व्याख्याएँ मिलीं.
आके जमुना तट पे कुछ मीठी निकटताएँ मिलीं.
मेरे अंतर में तो बस गोकुल की छवियाँ थीं मुखर,
जब जहां झाँका मुझे कान्हा की लीलाएँ मिलीं.
राधिका बरसाने में जबतक थीं सब सामान्य था,
जब मिलीं घनश्याम से नूतन मधुरिमाएँ मिलीं.
पांडवों ने सार्थी को चुन लिया, विजयी हुए,
कौरवो ने सैन्य-दल चाहा, विफलताएँ मिलीं.
स्वार्थवश जो युद्ध में कूदे कलंकित हो गए
न्याय पर स्थिर रहे जो उनको गरिमाएँ मिलीं.
लोग कहते हैं हुआ शैलेश ज़ैदी का निधन,
उसके घर कुछ भी न था बस चन्द कविताएँ मिलीं.
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शनिवार, 27 जून 2009
दरिया की गुहर-खेज़ियाँ कब देती हैं आवाज़.
आँखों में ये जब हों तो अजब देती हैं आवाज़.
है तश्ना-लबी चाहे-ज़नखदाँ के सबब से,
प्यासी हैं बहोत धड़कनें जब देती हैं आवाज़.
बज़्मे-लबो-रुखसार में जज़बात की कलियाँ,
बेसाख्ता खिलने के सबब देती हैं आवाज़.
किसके थे मकाँ, इनमें लगाई गयी क्यों आग,
मजबूरियाँ हैं मुह्र-बलब, देती हैं आवाज़.
कुरते के बटन टूटे हैं टांकेगा उन्हें कौन,
तनहाइयां क्यों यादों को अब देती हैं आवाज़.
खलियानों में है ढेर अनाजों का तो क्या है,
कुछ झोंपडियाँ गौर-तलब देती हैं आवाज़.
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गुहर-खेज़ियाँ = मोतियों से भरा होना, तश्ना-लबी = प्यास, चाहे-ज़नखदाँ = ठोढी के कुंएं, बे-साख्ता = सहज रूप से, मुह्र-बलब = मौन,
उल्झे क्या तुझ से महज़ थोडी सी तकरार में हम.
उलझे क्या तुझ से महज़ थोडी सी तकरार में हम.
अजनबी बन के फिरे कूचओ-बाज़ार में हम.
आहनी तौक़ पिन्हाया गया गर्दन में हमें,
और रक्खे गए जिन्दाने-शररबार में हम.
हम थे फनकार ये हमने कभी दावा न किया,
होके महदूद रहे अपने ही घर बार में हम.
आबलापाई के अंदेशों से गाफ़िल न हुए,
शौक़ से बढ़ते रहे वादिये-पुरखार में हम.
भारी पत्थर के तले दब के भी टूटे न कभी,
और घबराए न घिर कर कभी मंजधार में हम.
चीख की तर्ह बियाबानों में गूंजे हर सिम्त,
मुस्कुराते नज़र आये दिले-ग़म-ख्वार में हम.
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