ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / ले जाता है ऐ दिल मुझे लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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सोमवार, 29 जून 2009

ले जाता है ऐ दिल मुझे नाहक़ तू कहाँ और.

ले जाता है ऐ दिल मुझे नाहक़ तू कहाँ और.
गोकुल के सिवा कोई नहीं जाये-अमां और.

जमुना का ये तट और ये मुरली के तराने,
जी चाता है उम्र गुज़र जाये यहाँ और.

ये इश्क के इज़हार की आज़ादी कहाँ है
इस खित्ते को शायद हैं मिले अर्ज़ो-समाँ और.

हर सम्त कदम्बों के दरख्तों के हैं साये,
मुमकिन ही नहीं होती हो खुश्बूए-जिनाँ और.

सच्चाई के अल्फाज़ हैं दोनों के लबों पर
राधा का बयाँ और है कान्हा का बयाँ और.

इस दिल में अगर श्याम मकीं हो नहीं सकते,
हम फिर से बना लेंगे नया एक मकाँ और.
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