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रविवार, 31 अगस्त 2008

दुःख / सर्वेश्वर्दाया सक्सेना

दुःख है मेरा
सफ़ेद चादर की तरह निर्मल
उसे बिछाकर सो रहता हूँ.

दुःख है मेरा
सूरज की तरह प्रखर
उसकी रोशनी में
सारे चेहरे देख लेता हूँ.

दुःख है मेरा
हवा की तरह गतिवान
उसकी बाँहों में
मैं सबको लपेट लेता हूँ.

दुःख है मेरा
अग्नि की तरह समर्थ
उसकी लपटों के साथ
मैं अनंत में हो लेता हूँ.

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