आज तुम से मिलने का कितना मन था
पर मन को मैं ने रोक लिया था
तुम्हारे चेहरे पर
थकान और नींद मिलकर
जो भी भाव दे रहे थे
उन्हें मैंने अनपढा छोड़ कर
करवट बदल ली थी.
मन बे-मतलब, बे-परवाह नहीं है
कि चेहरे को पढ़कर भी जिद कर बैठे.
रात गहरा रही है
गहराने दो
क्योंकि आज
तुमसे मिलने का बहुत मन था.
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[दिल्ली 1986]
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शनिवार, 23 अगस्त 2008
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