25 फ़रवरी 2008 को युग-विमर्श ने एक विशेष संक्ल्प के साथ अपनी यात्रा प्रारंभ की थी। आज इस यात्रा के दो वर्ष पूरे हो गये।विगत वर्ष की तुलना में यह वर्ष पर्याप्त शान्त था।क्षेत्रीयता की हलकी सी दुर्गध और उसका छुटपुट प्रभाव अवश्य दिखायी दिया। दहशतगर्दी की धूलमिश्रित हवाओं ने आँखों के सामने के दृष्य धुंधले ज़रूर कर दिए, लेकिन हमने अपना धैर्य कहीं नहीं खोया।युगविमर्श की नज़र से युगीन राजनीतिक दाव-पेच कभी ओझल नहीं रहे, किन्तु यह उसका मैदान नहीं था। इस वर्ष हमने साहित्य की ही चर्चाएं अधिक कीं।जिन मित्रों ने पत्र लिख कर जिज्ञासाएं व्यक्त कीं, हमने उनका अपनी सीमाओं को पहचानते हुए समाधान भी किया । हाँ इस बार युग-विमर्श की प्रविष्टियां बहुत कम रहीं।विगत वर्ष हमने 519 प्रविष्टियाँ दर्ज की थीं जिन्हेँ 5872 पाठकों ने 14563 बार पढा। इस वर्ष हर स्तर पर कमी आयी है। इस वर्ष कुल 138 प्रविष्टियाँ ही स्थान पा सकी हैं जिन्हें 4830 पाठकों ने 7630 बार पढा है।यह संख्या यदि और कम भी होती तो मेरे संतोष के लिए पर्याप्त थी।मुझे प्रसन्नता है कि युग-विमर्श के पाठकों ने मेरी ग़ज़लों में विशेष रुचि ली और जो शेर भी उन्हें पसन्द आये उनकी प्रशसाएं भी कीं।मेरे कुछ आलेखों को भी पसन्द किया गया।कम्प्यूटर का ज्ञान अधिक न होने के कारण और कुछ उम्र के तक़ाज़े से भी मैं उतना सब कुछ नहीं दे पा रहा हूं, जितना मुझे देना चाहिएं ।जाने कितनी चीज़ें आधी अधूरी रह गयी हैं जिन्हें पोस्ट नहिं कर पाया हूं।काश ये वक़्त साथ देता।
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