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शनिवार, 30 अगस्त 2008

तनहाई के बाद / शहज़ाद अहमद

झांकता है तेरी आंखों से ज़मानों का खला
तेरे होंटों पे मुसल्लत है बड़ी देर की प्यास
तेरे सीने में रहा शोरे-बहारां का खरोश
अब तो साँसों में न गर्मी है, न आवाज़, न बास
फिर भी बाहों को है सदियों की थकन का एहसास

तेरे चेहरे पे सुकूं खेल रहा है लेकिन
तेरे सीने में तो तूफ़ान गरजते होंगे
बज़्मे-कौनैन तेरी आँख में वीरान सही
तेरे ख्वाबों के मुहल्लात तो सजते होंगे
गरचे अब कोई नहीं कोई नहीं आएगा
फिर भी आहट पे तेरे कान तो बजते होंगे

वक़्त है नाग तेरे जिस्म को डसता होगा
देख कर तुझ को हवाएं भी बिफरती होंगी
सब तेरे साए को आसेब समझते होंगे
तुझ से हमजोलियाँ कतरा के गुज़रती होंगी
तू जो तनहाई के एहसास से रोती होगी
कितनी यादें तेरे अश्कों से उभरती होंगी

ज़िन्दगी हर नए अंदाज़ को अपनाती है
ये फरेब अपने लिए जाल नए बुनता है
रक्स करती है तेरे होंटों पे हलकी सी हँसी
और जी को, कोई रूई की तरह धुनता है
लाख परदों में छुपा शोरे-अज़ीयत लेकिन
मेरा दिल तेरे धड़कने की सदा सुनता है

तेरा ग़म जागता है दिल के नेहां-खानों में
तेरी आवाज़ से सीने में फुगाँ पैदा है
तेरी आंखों की उदासी मुझे करती है उदास
तेरी तनहाई के एहसास से दिल तनहा है
जागती तू है तो थक जाती हैं आँखें मेरी
ज़ख्म जलते हैं तेरे, दर्द मुझे होता है.
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