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सोमवार, 18 जनवरी 2010

नयी ज़िन्दगी / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

नयी ज़िन्दगी

इसी तर्ह गर्मी की शफ़्फ़ाफ़ रातों में,
ऐ चान्द !
करता रहे तू अगर
रोज़ चान्दी की बारिश,
इसी तर्ह वो शोख़ लड़का
सुनाता रहे गर तुझे
रोज़ अपनी मुहब्बत के नग़मे,
इसी तर्ह निकलें वो जोड़े अगर
दूधिया रोशनी में
जवाँ आरज़ूओं के ख़ुशलह्न बोसे
तुझे नज़्र करते हुए
और इसी तर्ह गर वो ज़ईफ़ा
निकल कर शुआओं से लब्रेज़ आँगन में
अंगूर के सब्ज़ ख़ोशों को
ख़ुशरग यादों से भरती रहे,
मैं तुझे अपनी नज़्मों में ऐ चान्द !
देता रहूंगा नयी ज़िन्दगी।
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