नई कविता / लीलाधर जगूडी / अभी-अभी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
नई कविता / लीलाधर जगूडी / अभी-अभी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

अभी-अभी / लीलाधर जगूडी

अभी-अभी टहनियों के बीच का आकाश
किसने रचा ?
हमारे गाँव की दिशा खुली
घास की चूड़ी बनती हुई
उजली रातों की बात मुझसे करती है
मेरी छोटी बहन.

दिन फसलों के बीच फिसलता हुआ
ठीक से पाक गया
कोई पिछला समय
मकान के अहाते में पेड़ों पर
चढ़ा हुआ

एक और शुरूआत बदली
मेरी तारीखों के आस-पास
खूब लम्बी होकर
अपने पर ही ढल गई है घास.
*******************