धूल हवाओं में शामिल है।
गर्द है ऐसी जान ख़जिल है॥
सूरज की शह पाकर मौसम,
दहशतगर्दी पर माइल है॥
दरिया में है शोर-अंगेज़ी,
सन्नटा ओढे साहिल है॥
चाँद समन्दर में उतरा है,
शर्म से पानी-पानी दिल है॥
क़त्ले-आम तो होना ही है,
तख़्त-नशीं जब ख़ुद क़ातिल है॥
खो गया सब कुछ जब आँधी में,
अब फ़रियाद से क्या हासिल है॥
घर है सब सैलाब की ज़द में,
ग़र्क़ाबी ही अब मंज़िल है॥
मजनूँ की तक़दीर है सहरा,
लैला तक़दीरे-महमिल है॥
ज़िक्र मेरे अश'आर का हर सू,
हर लब पर महफ़िल-महफ़िल है॥
********