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सोमवार, 10 नवंबर 2008

रिश्ता नहीं किसी का किसी फ़र्द से मगर.

रिश्ता नहीं किसी का किसी फ़र्द से मगर.
हम-मज़हबों के साथ हैं हमदर्द से मगर.
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जब आई घर पे बात तो लब बंद हो गए,
पहले बहोत थे गर्म, हैं अब सर्द से मगर.
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दहशत-गरी की गर्द न चेहरे पे आ पड़े,
परहेज़ भी, लगाव भी है गर्द से मगर.
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आजाद थे तो करते थे मर्दानगी की बात,
पकड़े गए तो हो गए नामर्द से मगर.
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आंधी चमन में आई तो सब बेखबर रहे,
कुछ सुर्ख फूल हो गए क्यों ज़र्द से मगर.
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