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बुधवार, 14 जनवरी 2009

मदद न देना किसी को बहादरी तो नहीं.

मदद न देना किसी को बहादरी तो नहीं.
हमारे मुल्क का किरदार बेहिसी तो नहीं.
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दुरुस्त है कि वो कातिल है बेगुनाहों का,
मगर अकेला वही ऐसा आदमी तो नहीं.
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हमारे शह्र में रहते हैं कितने दहशत-गर्द,
अदालतों से किसी को सज़ा मिली तो नहीं.
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हजारों लोगों को जिंदा जला दिया हमने,
मगर निगाह हमारी कभी झुकी तो नहीं.
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वतन परस्त हैं, कुर्बानियों से डरते हैं,
वतन के साथ हमारी ये दोस्ती तो नहीं.
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सियासतों ने बनाया है सरबराह जिन्हें,
वो क़ायदीन भी इल्ज़ाम से बरी तो नहीं.
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हम इत्तेहाद की बातें ज़रूर करते हैं,
असर दिलों पे हो ऐसी फ़िज़ा बनी तो नहीं.
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हमारे खून भी शायद बँटे हैं फ़िरकों में,
बहा के गैरों का खूँ हमको बेकली तो नहीं।

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