ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / दोस्तों से राब्ता रखना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

दोस्तों से राब्ता रखना बहोत मुश्किल हुआ.

दोस्तों से राब्ता रखना बहोत मुश्किल हुआ.
कुछ खुशी, कुछ हौसला रखना बहोत मुश्किल हुआ.
वक़्त का शैतान हावी हो चुका है इस तरह,
दिल के गोशे में खुदा रखना बहोत मुश्किल हुआ.
किस तरफ़ जायेंगे क्या-क्या सूरतें होंगी कहाँ,
ज़ह्न में ये फैसला रखना बहोत मुश्किल हुआ.
हो चुके हैं फ़िक्र के लब खुश्क भी, मजरूह भी,
उन लबों पर अब दुआ रखना बहोत मुश्किल हुआ.
मान लेना चाहिए सारी खताएं हैं मेरी,
आज ख़ुद को बे-खता रखना बहोत मुश्किल हुआ,
कब कोई तूफाँ उठे, कब हो तबाही गामज़न,
मौसमे-गुल को जिला रखना बहोत मुश्किल हुआ.
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