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बुधवार, 17 सितंबर 2008

जिस्म के टुकड़े धमाकों ने उड़ाए

जिस्म के टुकड़े धमाकों ने उडाये चार सू.
शहर में हैं मुन्तशिर दहशत के साये चार सू.
जाने किन-किन रास्तों से आयीं काली आंधियां,
फिर रहे हैं लोग अपनी जाँ बचाए चार सू.
ज़हन के आईनाखानों पर है दुनिया का गुबार,
हिर्स का जादू ज़माने को नचाये चार सू.
अपने कांधों पर उठाकर अपने सारे घर का बोझ,
दर-ब-दर की ठोकरें इंसान खाये चार सू.
जब भी वो नाज़ुक-बदन आए नहाकर बाम पर,
उसकी खुशबू एक पल में फैल जाए चार सू.
इन बियाबां खंडहरों को देखकर ऐसा लगा,
देखते हों जैसे ये नज़रें गड़ाए चार सू.
दूध से झरनों में होकर नीम-उर्यां आजकल,
ज़िन्दगी का खुशनुमा मौसम नहाए चार सू.
उजले-उजले पैकरों में चाँद की ये बेटियाँ
घूमती हैं आसमां सर पर उठाये चार सू.
कुछ नहीं 'जाफ़र' कहीं तुमसे अलग उसका वुजूद,
जिसको तुम सारे जहाँ में ढूंढ आए चार सू.
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