आसमानों ने समंदर की कमी महसूस की.
इस ज़मीं के सामने बेचारगी महसूस की.
आज छत पर मेहरबाँ होकर उतर आया था चाँद,
उससे कुछ बातें हुईं, कुछ ज़िन्दगी महसूस की.
उसकी बातों में कशिश ऐसी थी, जी भरता न था,
दिल ने सूनी वादियों में रोशनी महसूस की,
पाया जब मैंने हवाओं को तड़प से बदहवास,
उनके सीने में कोई बरछी चुभी महसूस की.
बंद थे मुद्दत से कुछ खस्ता लिफ़ाफ़ों में खुतूत,
पढ़के जब देखा, अनोखी ताज़गी मह्सूस की.
ये सदी 'जाफ़र' हुई जब मुझसे महवे-गुफ्तुगू,
इसके मक़सद में कहीं गारत-गरी महसूस की.
***********************
ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / आसमानों ने समंदर की कमी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / आसमानों ने समंदर की कमी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
बुधवार, 22 अक्तूबर 2008
आसमानों ने समंदर की कमी महसूस की.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)