ग़ज़ल / शैलेश ज़ैदी / दुविधाओं में क्यों पड़ते हो लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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सोमवार, 23 मार्च 2009

दुविधाओं में क्यों पड़ते हो, साथ चलो.

दुविधाओं में क्यों पड़ते हो, साथ चलो.
सहयात्री निश्चित अच्छे हो, साथ चलो.

आत्मीय पाओगे, कुछ विशवास करो,
ऐसी बातें क्यों करते हो, साथ चलो.

देखो प्रातः ने आँखें खोली होंगी,
रात कटी, अब क्यों बैठे हो, साथ चलो.

इधर - उधर भटकोगे गलियों - कूचों में,
किस अतीत के मतवाले हो, साथ चलो.

आँखें बिछी हुई हैं सबकी राहों में,
तुम आखिर क्या सोच रहे हो, साथ चलो.
*