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सोमवार, 1 दिसंबर 2008

तंग आ चुके हैं लोग इस आतंकवाद से.

तंग आ चुके हैं लोग इस आतंकवाद से.
अब देखना है होते हैं कैसे ये हादसे.
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वो शत्रु हो पड़ोस का या हो वो कोई और,
मिलता है उसका वंश कहीं मेघनाद से.
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साहस न करना इसकी परीक्षा का तुम कभी
लोहा ये आत्मबल का है निखरा खराद से.
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पड़ने न देंगे हम कभी आपस में कोई फूट,
हम मुक्त सम्प्रदायों के हैं हर विवाद से.
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मिटटी चटा दिया है तुम्हें हमने ताज में,
दहशत का नाम लोगे न तुम इसके बाद से.
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इस्लाम के हो नाम पे तुम बदनुमा कलंक,
शायद उपज तुम्हारी है दोज़ख की खाद से.
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वैसे तो हम सशक्त हैं, पर ये भी जान लो,
हम हैं अजेय धरती के आशीर्वाद से.
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