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बुधवार, 31 दिसंबर 2008

इष्ट देवों को बिठाकर स्वर्ण सिंहासन पे आज.

इष्ट देवों को बिठाकर स्वर्ण सिंहासन पे आज.
करते हैं श्रद्धा प्रर्दशित लोग काले धन पे आज.
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कल्पनाओं से परे हैं राजनीतिक दाव-पेच,
बनती है सरकार उल्टे-सीधे गठबंधन पे आज.
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बाहु-बलियों के ही बूते पर खड़े हैं जो प्रदेश,
किस तरह इठला रहे हैं अपने अनुशासन पे आज.
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जन्म-दिन शासक का निश्चय ही मनेगा धूम से,
मैं भी कितना मूर्ख हूँ हँसता हूँ इस बचपन पे आज.
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इस व्यवस्था को बदलना हो गया है लाज़मी,
टिक गई है दृष्टि संभावित से परिवर्तन पे आज.
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दोष आरोपित किसी पर करने से क्या लाभ है,
बल कोई देता नहीं किरदार के नियमन पे आज.
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राजनेताओं के वक्तव्यों से जनता क्षुब्ध है,
रोक लगनी चाहिए शब्दों के इस वाहन पे आज.
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