ग़ज़ल / शैलेश ज़ैदी / आस्थाएं पल्लवित हैं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ग़ज़ल / शैलेश ज़ैदी / आस्थाएं पल्लवित हैं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 13 दिसंबर 2008

आस्थाएं पल्लवित हैं जो मिथक के रूप में.

आस्थाएं पल्लवित हैं जो मिथक के रूप में.
देखता है क्यों उन्हें इतिहास शक के रूप में.
*******
अब वो आदम सेतु हो या सेतु हो श्री राम का,
दोनों ही जीवित हैं साँसों की महक के रूप में.
*******
खुल के पाकिस्तान बातें कर नहीं सकता कभी,
व्यक्त दुर्बलताएं उसकी हैं झिझक के रूप में.
*******
लोग भावुकता में आकर जो भी जी चाहे कहें,
एक हैं सब तैल-चित्रों के फलक के रूप में.
*******
भभकियां देते हैं वो भीतर से जो होते हैं रिक्त,
हाल दीपक का हुआ ज़ाहिर भभक के रूप में.
*******
अर्चना, पूजा, अज़ानें, दाढियां, रोचन तिलक,
धर्म, मज़हब के दिखावे हैं सनक के रूप में,
*******
पेड़ पर आता है जब भी फल तो झुक जाता है पेड़,
ज्ञान की अभिव्यक्ति होती है लचक के रूप में.
*******
मन में हो संतोष तो सत्कर्म में ही स्वर्ग है,
मन कलुष हो जब तो है जीवन नरक के रूप में.
**************