रात की आँखें बेहद नम थीं।
वो भी शायद शामिले-ग़म थीं ॥
सूरज कुछ ज़र्दी माएल था,
किरनों की पेशानियाँ ख़म थीं॥
दरिया की तूफ़ानी लहरें,
तल्ख़िए-साहिल से बरहम थीं॥
सुस्त पड़ी थीं तेज़ हवाएं,
बून्दें बारिश की मद्धम थीं॥
फूल सभी मुरझाए हुए थे,
तितलियां सब मह्वे-मातम थीं॥
ज़ुल्मो-तशद्दुद जाग रहा था,
राहत की उम्मीदें कम थीं॥
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